मुझे नहीं लगता ये हुनर कभी सीख सकूंगा,
ज़माना जैसा चाहे उस हिसाब का दिख सकूंगा
मैं सच लगने वाले सौ झूठ की जगह,
एक झूठ लगने वाली सच्चाई लिख सकूंगा
मुकाबला करादो मेरा चाहे समंदर से, तूफान से,
माफ़ करना आंसुओं के सामने नहीं टिक सकूंगा
एक अरसे से खामोशी दबाई है सीने में,
मुझे शोर शराबे में डालना जहां चीख सकूंगा
अच्छा होना नहीं अच्छा दिखना मायने रखता है
तभी शायद इस बाज़ार में बिक सकूंगा,
अनस आलम।
ज़माना जैसा चाहे उस हिसाब का दिख सकूंगा
मैं सच लगने वाले सौ झूठ की जगह,
एक झूठ लगने वाली सच्चाई लिख सकूंगा
मुकाबला करादो मेरा चाहे समंदर से, तूफान से,
माफ़ करना आंसुओं के सामने नहीं टिक सकूंगा
एक अरसे से खामोशी दबाई है सीने में,
मुझे शोर शराबे में डालना जहां चीख सकूंगा
अच्छा होना नहीं अच्छा दिखना मायने रखता है
तभी शायद इस बाज़ार में बिक सकूंगा,
अनस आलम।