उसका मेरी बंद आंखो को चूमना
अपनी ज़ानों पर घंटों मेरा सर रख कर बालों में उंगलियां फेरना
मैं भले रूठ जाऊं पर उसका मुझे चाहते रहना
ऐसी कुव्वत मां के दिल के सिवा किसी दिल को हासिल नहीं
देखी ही नहीं आज तक ऐसी तड़प जो तेरी आंखो में थी मेरे घर छोड़ते वक्त थी
देखा ही नहीं आज तक ऐसा आंचल जिसकी खुशबू आज तलक बरक़रार है
देखी ही नहीं ऐसी आह जो मुझे चोट लगने पर तेरे कलेजे से निकलती है
कभी कभी लगता है तेरे किरदार को बायां करने का मर्तबा कोई शायर नहीं रखता
कभी कभी लगता है एक ग़ज़ल में तुझे उतार पाना नामुमकिन सा है
कभी कभी लगता है मेरे सारे एहसास जो तेरे लिए हैं वो एक नज़्म में समा नहीं पाएंगे
पर फिर भी अपनी इस नाकाम कोशिश में ये कोशिश कर रहा हूं के तुझे बायां कर सकूं
लजीज रोटियों के पीछे न जाने कितनी बार जले हाथ थे
तुम्हे खिलाने के वास्ते न जाने उसकी कितनी बार भूखी रातें थी
तुम्हे पैदा करते वक्त ऐसा दर्द जो किसी मर्द के लिए सेहेन कर पाना नामुकिन है
पर फिर भी तुम कहते हो पैदा तो सब करते हैं पालते सब हैं
सच में ऐसी मोहब्बत की कुव्वत मां के दिल के सिवा किसी दिल को हासिल नहीं।
अनस आलम
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