Sunday, 5 May 2019

MAA KA DIL

उसका मेरी बंद आंखो को चूमना 

अपनी ज़ानों पर घंटों मेरा सर रख कर बालों में उंगलियां फेरना

मैं भले रूठ जाऊं पर उसका मुझे चाहते रहना 

ऐसी कुव्वत मां के दिल के सिवा किसी दिल को हासिल नहीं 

देखी ही नहीं आज तक ऐसी तड़प जो तेरी आंखो में थी मेरे घर छोड़ते वक्त थी

देखा ही नहीं आज तक ऐसा आंचल जिसकी खुशबू आज तलक बरक़रार है 

देखी ही नहीं ऐसी आह जो मुझे चोट लगने पर तेरे कलेजे से निकलती है 

कभी कभी लगता है तेरे किरदार को बायां करने का मर्तबा कोई शायर नहीं रखता 

कभी कभी लगता है एक ग़ज़ल में तुझे उतार पाना नामुमकिन सा है 

कभी कभी लगता है मेरे सारे एहसास जो तेरे लिए हैं वो एक नज़्म में समा नहीं पाएंगे 

पर फिर भी अपनी इस नाकाम कोशिश में ये कोशिश कर रहा हूं के तुझे बायां कर सकूं 

लजीज रोटियों के पीछे न जाने कितनी बार जले हाथ थे 

तुम्हे खिलाने के वास्ते न जाने उसकी कितनी बार भूखी रातें थी

तुम्हे पैदा करते वक्त ऐसा दर्द जो किसी मर्द के लिए सेहेन कर पाना नामुकिन है 

पर फिर भी तुम कहते हो पैदा तो सब करते हैं पालते सब हैं 

सच में ऐसी मोहब्बत की कुव्वत मां के दिल के सिवा किसी दिल को हासिल नहीं। 

अनस आलम 

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