खेतों में लहलहाती फसल बोलती है,
ज़बान खामोश रहती है ग़ज़ल बोलती है
रोकने वाली आंधियों की पहचान क्या बताऊं,
हर मोड़ पर ये चेहरा बदल बोलती हैं
समझने वाले चाहे समझे न समझे,
लब खामोश रहते है शकल बोलती है
क्या सोचते हो दबा ले जाओगे इन्हें तुम,
ये नए ज़माने की नसल बोलती है
अनस आलम।
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