जिस्म में मर रहा था जो ज़मीर निकाल लाया हूं
पैरों में बंधी थी एक जंजीर निकाल लाया हूं
उसके हाथों में खंजर था खयालों में बगावत कि बू
मेयान में मेरे भी थी एक शामशीर निकाल लाया हूं
किसी ने मुझसे जब पूछा तेरे पास है ही क्या
काग़ज़ के मलबे में दफ्न कुछ तहरीर निकाल लाया हूं
खुद को बहुत समझाया मगर हर बार नाकाम रहा
अलमारी को टटोल कर एक तस्वीर निकाल लाया हूं
ज़ख्मी कर पूरी शिद्दत से मैं नहीं रोकूंगा आज
देख मैं कमान के सारे तीर निकाल लाया हूं
अनस आलम
पैरों में बंधी थी एक जंजीर निकाल लाया हूं
उसके हाथों में खंजर था खयालों में बगावत कि बू
मेयान में मेरे भी थी एक शामशीर निकाल लाया हूं
किसी ने मुझसे जब पूछा तेरे पास है ही क्या
काग़ज़ के मलबे में दफ्न कुछ तहरीर निकाल लाया हूं
खुद को बहुत समझाया मगर हर बार नाकाम रहा
अलमारी को टटोल कर एक तस्वीर निकाल लाया हूं
ज़ख्मी कर पूरी शिद्दत से मैं नहीं रोकूंगा आज
देख मैं कमान के सारे तीर निकाल लाया हूं
अनस आलम
Ek no Bhai
ReplyDeleteShukriya ......visit karte rhiye
DeleteBahut khoob
ReplyDeleteShukriya...... visit karte rahen
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