एक अरसे से मकान सुनसान है,
अब आजाओ के दिल वीरान है
तुम एक बार हाथ तो थामो,
ये सफर बहुत आसान है
मेरी कश्ती वो डुबो नहीं सकता,
उस समंदर से मेरी पहचान है
ग़म मेरे वजूद का हिस्सा है,
खुशियां कुछ वक़्त की मेहमान हैं
शोहरत ले कर कब्र में जाएगा नहीं,
फिर क्यूं इतना मग़रुर इन्सान है
तुमहारे नाम से एहतियात बरतता हूं,
फिसल जाती है आख़िर ज़ुबान है
अनस आलम।
अब आजाओ के दिल वीरान है
तुम एक बार हाथ तो थामो,
ये सफर बहुत आसान है
मेरी कश्ती वो डुबो नहीं सकता,
उस समंदर से मेरी पहचान है
ग़म मेरे वजूद का हिस्सा है,
खुशियां कुछ वक़्त की मेहमान हैं
शोहरत ले कर कब्र में जाएगा नहीं,
फिर क्यूं इतना मग़रुर इन्सान है
तुमहारे नाम से एहतियात बरतता हूं,
फिसल जाती है आख़िर ज़ुबान है
अनस आलम।
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