मैं अपनी नज़्मों को लिख के मिटा देता हूं,
उनको तेरा ज़िक्र न करने की सज़ा देता हूं
जब कभी याद तेरी बहुत आ जाती है,
कमरे में तेरी एक तस्वीर सजा देता हूं
बस तेरी एक कमबख्त खिड़की की खातिर,
गली के दो चार चक्कर लगा देता हूं
ये खाली कमरा जब काटने को दौड़ता है,
तेरी आवाज़ टेप रिकॉर्डर में बजा देता हूं
तेरे हाथो का जायका मिल तो नहीं पता,
फिर भी तक हार कर चाए बना देता हूं
अनस आलम।
उनको तेरा ज़िक्र न करने की सज़ा देता हूं
जब कभी याद तेरी बहुत आ जाती है,
कमरे में तेरी एक तस्वीर सजा देता हूं
बस तेरी एक कमबख्त खिड़की की खातिर,
गली के दो चार चक्कर लगा देता हूं
ये खाली कमरा जब काटने को दौड़ता है,
तेरी आवाज़ टेप रिकॉर्डर में बजा देता हूं
तेरे हाथो का जायका मिल तो नहीं पता,
फिर भी तक हार कर चाए बना देता हूं
अनस आलम।
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