गुज़रे वक्त का वो फसाना याद आता है,
छुप छुप के मिलने का ज़माना याद आता है
कंबल में हिचकिचाते दो जिस्मों का,
लिपट जाने का बहाना याद आता है
शर्म की उस चाशनी में डूबी वो आंखें,
फिर बेपरवाही से जुल्फों का बिखर जाना याद आता है
जिस्मों की बहकी सी कुछ ख्वाहिश लिए,
रातों का गुज़र जाना याद आता है
उस गली की यादें अब तक ताज़ा हैं,
खिड़की निहारता एक लड़का दीवाना याद आता है
सफर में कांटों का सिलसिला बढ़ता रहा,
कांटों पर चल के तेरा निभाना याद आता है
अनस आलम
Lovely 💓💓💓💓💓
ReplyDeleteShukriya 😊
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