Thursday, 23 May 2019

Gazal | ek dard |

ये सैलाब मेरी दहलीज तक आ ना पाएगा,
मैं वो तिनका हूं, एक समंदर में समा ना पाएगा

जमाना चाहे बिक जाए आज की सियासत के हाथों,
मेरा ज़मीर मेरा पिंदार गवा ना पाएगा

अंधेरा ही रहने दो इन नफरत की गलियों में,
ये शहर कभी मोहब्बत कमा ना पाएगा

नफरत हावी है तेरे ज़हन पर इस क़दर,
अपनी आंखे खोल तू मुझसा हमनवा ना पाएगा

अनस आलम




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