चेहरे को सुबह जुल्फों को शाम बना कर देखते हैं,
घूंघट को अदब आंखो को जाम बना कर देखते हैं
सफर की शुरुआत और मंज़िल की तलाश में हूं,
तेरे होठों को आगाज़ सांसों को अंजाम बना कर देखते हैं
दुनिया के तमाम पेशों को आज ठुकरा कर,
जुल्फों को संवारना एक काम बना कर देखते हैं
दर्द, रुसवाई, सितम, चाहत, जुदाई, सब छोड़ कर,
तेरी आंखो पर कोई कलाम बना कर देखते हैं।
अनस आलम।
घूंघट को अदब आंखो को जाम बना कर देखते हैं
सफर की शुरुआत और मंज़िल की तलाश में हूं,
तेरे होठों को आगाज़ सांसों को अंजाम बना कर देखते हैं
दुनिया के तमाम पेशों को आज ठुकरा कर,
जुल्फों को संवारना एक काम बना कर देखते हैं
दर्द, रुसवाई, सितम, चाहत, जुदाई, सब छोड़ कर,
तेरी आंखो पर कोई कलाम बना कर देखते हैं।
अनस आलम।
Rahat indori sahab ki list me aa gye Hain aap ....#last stanza 😊
ReplyDeleteShukriya....... visit karti rahen
ReplyDelete😇😇😇god bless u
ReplyDeleteShukriya.......visit karte rahen
ReplyDelete