Saturday, 25 May 2019

अजीब कशमकश

मैं एक अजीब किस्म के सन्नाटे को देख और सुन सकता हूं, इस हजारों की भीड़ में जिनका शोर कानों को चुभता है,
मुझे नजर आता है कि लोग अपनी आंखो पर पट्टी बांधे भी देख सकते हैं, क्या उनकी आंखो की पट्टी सिर्फ मुझे नजर आती है, क्या उनकी आंखो की पट्टी सिर्फ उन्हें कोई एक चीज देखने से रोक रही है, इन सब के जिस्मों पर लिबास एक रंग का क्यूं है, ये कौन लोग हैं इनकी आवाज़ का नारा मेरी रूह को देहला क्यूं रहा है, मैं दूर खड़ा एक आग को धीरे धीरे शहर की ओर बढ़ता देख रहा हूं इस आग की आंच कुछ लोगों को बहुत ठंडक पहुंचा रही है हालांकि मैं देख सकता हूं यही आग उनके जिस्म से चमड़ी को बहुत बेदर्दी से अलग कर रही है मैं उस आग में जलते लोगों का दर्द महसूस कर सकता हूं पर शायद उनकी आंखों की पट्टी उन्हें वो आग देखने से रोक रही है इस आग को बुझा पाना नामुमकिन सा लगता है, मैं बस बेसहारा हो कर अपनी और अपनों की तबाही देख रहा हूं।

अनस आलम

No comments:

Post a Comment