जलते चारागों का मुस्तकबिल नहीं होता
जलते चरागों का मुस्तकबिल नहीं होता,
क्यूंकि हवाओं का कोई दिल नहीं होता
कौन अपना कौन पराया वो खुद बताएंगे,
हर शख्स दुख सुख में शामिल नहीं होता
हर बार घायल होगा मगर उस उठना होगा,
कोई इश्क़ इतनी आसानी से कामिल नहीं होता
कभी कभी सोचता हूं क्या ग़ज़ब हो जाता,
गर तेरे रुखसारों पर ये तिल नहीं होता
बूंदों में सदियों का सफर तय करता है,
कोई साहिल इतनी आसानी से साहिल नहीं होता
अनस आलम
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