Friday, 3 May 2019

Yaad hai na....

याद है ना,
मेरे हाथों में वो गुलदस्ता,
तेरे घर तक जाने वाला रास्ता,
तेरा मुझसे अनजाने में वाबस्ता,
ये सब मुझसे पूछते हैं के कहां है तू, 

याद है ना,
तेरा घंटो तक मुझमें हो जाना मशगूल,
तेरे हाथ से मेरा हाथ छू जाना जिसे तू कहती थी भूल,   
किताबों में दबे वो गुलाब के,
ये यादें मुझसे पूछती हैं के कहां है तू,

याद है ना,
तेरा खिड़की से यूं झांकना, 
अपने हाथो से तेरी बदन कि सिलवटों को मेरा नापना,
मेरा पहली बार तुझे छूने पर तेरा वो कांपना,
ये ज़िन्दगी के कुछ पहलू हमेशा सवाल करते हैं कहां है तू,

याद है ना,
तेरी खुशबू दावा थी और मैं कोई बेचैन मर्ज़,
जैसे मैं नमाज़ी और तू कोई नमाज़े फ़र्ज़,
जैसे तेरी बाहें शराफत और मैं कोई बदनाम कर्ज़,
ऐसे ही कुछ किस्से पूछते हैं मुझसे के कहां है तू,

याद है ना,
उन हसीन रातों में मेरी बदन का तेरी बदन से वो पाक वास्ता,
मेरी उंगलियों का सफर, तेरी पेशानी से पांज़ेब तक का रास्ता,
उस कागज़ पर लिखी मोहब्बत के बंटवारे की दास्तां, 
अक्सर  ये खयाल मुझसे पूछते हैं के कहां है तू,
याद है ना।                                          

 ~अनस आलम 

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