जिस शाख़ का पत्ता हूं उसकी गोद में सो लूं आज,
मां सामने है जी चाहता है लिपट के रो लूं आज
ये जो इत्र बहुत नाज़ करते हैं अपनी खुशबू पर,
शर्मा जाएं, मां के आंसुओं से गर दामन भिगो लूं आज
ये दैर-ओ-हरम में रूह पाक करने को भटकता था,
मां के क़दमों में किए सजदों से पाक हो लूं आज
वो वक्त आजाए के मां फिर से दौड़े मेरे पीछे,
जी चाहता है फिर घी में उंगलियां डुबो लूं आज
अनस आलम
मां सामने है जी चाहता है लिपट के रो लूं आज
ये जो इत्र बहुत नाज़ करते हैं अपनी खुशबू पर,
शर्मा जाएं, मां के आंसुओं से गर दामन भिगो लूं आज
ये दैर-ओ-हरम में रूह पाक करने को भटकता था,
मां के क़दमों में किए सजदों से पाक हो लूं आज
वो वक्त आजाए के मां फिर से दौड़े मेरे पीछे,
जी चाहता है फिर घी में उंगलियां डुबो लूं आज
अनस आलम
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