दिन में रहूं तो मैं रौशन शाम ढूंढता हूं,
मदहोशी में तो बावर्चीखाने में भी जाम ढूंढता हूं
तनहा हूं, तार्रुफ कराओ मेरा ज़रा कुछ हसीनो से,
इस क़दर खाली हू के कुछ काम ढूंढ़ता हूं
तुमने ही आदत बिगाड़ी मेरी खिड़कियों से झांक,
में पागल अब हर दरख़्त पर आम ढूंढ़ता हूं
इस तरह से घेरा है मोहब्बत ने मुझे "आलम"
की हर किताब में ग़ालिब का नाम ढूंढ़ता हूं
अनस आलम..
मदहोशी में तो बावर्चीखाने में भी जाम ढूंढता हूं
तनहा हूं, तार्रुफ कराओ मेरा ज़रा कुछ हसीनो से,
इस क़दर खाली हू के कुछ काम ढूंढ़ता हूं
तुमने ही आदत बिगाड़ी मेरी खिड़कियों से झांक,
में पागल अब हर दरख़्त पर आम ढूंढ़ता हूं
इस तरह से घेरा है मोहब्बत ने मुझे "आलम"
की हर किताब में ग़ालिब का नाम ढूंढ़ता हूं
अनस आलम..
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