Sunday, 26 May 2019

Ek hakikat | gazal ek sacchai |




किसी बाज़ार में अपना ईमान बेच आया है,
इंसान अपनी रूह का सामान बेच आया है

घर में बच्चों कि दो रोटी की ख़ातिर,
बाप अपना ऐशो आराम बेच आया है

मैं तो अपना नाख़ून तक ना दूं इन्हें,
यहां तो हर शख्स अपनी ज़बान बेच आया है

ये आदमी इतने जज़बे के साथ कैसे खड़ा है,
लगता है ये अपना गेहरबान बेच आया है

Anas alam.✍️✍️







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