Friday, 2 August 2019

Shayri 2019

मुझे नहीं लगता ये हुनर कभी सीख सकूंगा,
ज़माना जैसा चाहे उस हिसाब का दिख सकूंगा

मैं सच लगने वाले सौ झूठ की जगह,
एक झूठ लगने वाली सच्चाई लिख सकूंगा

मुकाबला करादो मेरा चाहे समंदर से, तूफान से,
माफ़ करना आंसुओं के सामने नहीं टिक सकूंगा

एक अरसे से खामोशी दबाई है सीने में,
मुझे शोर शराबे में डालना जहां चीख सकूंगा

अच्छा होना नहीं अच्छा दिखना मायने रखता है
तभी शायद इस बाज़ार में बिक सकूंगा,

अनस आलम।

Monday, 1 July 2019

Shayari 2019 | uska hukm khud uspar hi chala nahin | gazal 2019

uska hukm khud uspar hi chala nahin
Uske daman se mera daagh dhula nahin

Ek chitthi me uske aansu bhe shamil the
Sab khat jal gaye vo khat jala nahin

Ye rooh khoobsurat rooh talash me hai 
Jismon se mera rishta koi khaas chala nahin

Mohabbat me hijr ki raaten bhe hain
Warna mujhe ishq se koi gila nahin

Is baar Ajeeb ittafaq tha har baar se
Vo galati se bhe raston par mila nahin

Anas alam

उसका हुक्म खुद उस पर ही चला नहीं,
उसके दामन से मेरा दाग़ धुला नहीं

एक चिट्ठी में उसके आंसू भी शामिल थे,
सारे ख़त जल गए वो ख़त जला नहीं

ये रूह एक रूह की तलाश में है,
जिस्मों से मेरा रिश्ता कोई ख़ास चला नहीं

मोहब्बत में ये हिज्र की रातें भी हैं,
वरना मुझे इश्क़ से कोई गिला नहीं

इस बार अजीब इत्तेफ़ाक़ था हर बार से,
वो ग़लती से भी रास्तों पर मिला नहीं

अनस आलम 

Saturday, 29 June 2019

Shayari 2019 | is shaam ka aana bhe | gazal 2019

इस शाम का आना भी आना क्या है,
बता आज इनकार का बहाना क्या है

आइए बैठिए मोहब्बत से बात करते हैं,
ये बात बात पर लहू बहाना क्या है

ज़मीन सींचते मर गया एक किसान,
अब ख़ुदग़र्ज़ बारिश का आना क्या है

मेरे ख़ून को मिट्टी से मिला फिर देख,
मालूम होगा तुझे वतन का दीवाना क्या है

बस उसका चेहरा देखकर खामोश रहता हूं,
ख़ाक में मिला दूं ये जा ज़माना क्या है

चाहूं तो घोल दूं बगावत अशआरों में लेकिन,
गुलिस्तां में नफरत की बू उड़ाना क्या है

मैं काग़ज़ पर इन्कलाब लिख कर चला जाऊंगा,
उसके बाद ज़ोर ए कलम बताना क्या है

इस क़त्लेआम को कोइ और नाम देदो,
अब बीच में राम को लाना क्या है

अनस आलम

Thursday, 27 June 2019

Shayari 2019 | apni zulfon ko | gazal 2019

अपनी ज़ूल्फों को यूं बेखायाल करती है
कुछ इस तरह से वो हवा का इस्तेमाल करती है

अब उसके तार्रुफ में मैं तुमसे क्या कहूं
एक लड़की जो मेरी अम्मी का खयाल करती है

ये कमरा घर में ख़ुशबू का जरिया बना रहता है
जब बिखेर कर वो ठीक अपने बाल करती है

मीर ओ ग़ालिब तक समझ न पाए इस बाला को
गालों को हाथों से कभी बोसो से लाल करती है

Anas alam



Wednesday, 26 June 2019

Shayari 2019 | jism me mar rha | gazal 2019

जिस्म में मर रहा था जो ज़मीर निकाल लाया हूं
पैरों में बंधी थी एक जंजीर निकाल लाया हूं

उसके हाथों में खंजर था खयालों में बगावत कि बू
मेयान में मेरे भी थी एक शामशीर निकाल लाया हूं

किसी ने मुझसे जब पूछा तेरे पास है ही क्या 
काग़ज़ के मलबे में दफ्न कुछ तहरीर निकाल लाया हूं

 खुद को बहुत समझाया मगर हर बार नाकाम रहा
अलमारी को टटोल कर एक तस्वीर निकाल लाया हूं

ज़ख्मी कर पूरी शिद्दत से मैं नहीं रोकूंगा आज
देख मैं कमान के सारे तीर निकाल लाया हूं

अनस आलम

Tuesday, 25 June 2019

Shayari 2019 | beghar | gazal 2019

Beghar se puch ghar bar kise kehte hain
Fakat aaine se puch kirdar kise kehte hain

Dard o sitam k qisse bahut sune honge
Kabhi aangan se puch dewaar kise kehte hain

Har kisi ko nahi hasil quvat mujhe samjhne ki
Bs sukhnwar janta hai kalamkar kise khte hain

Nikle ho bazar me hadason ki kitaab kharedne
jante nahin ho kya akhabar kise kehte hain

Aap khuda wale hon ya ishq wale hon
Aap jante honge ehmiyat e dedar kise kehte hain

Anas alan m

बेघर से पूछ घर बार किसे कहते हैं,
फकत आइने से पूछ किरदार किसे कहते हैं

दर्द ओ सितम के क़िस्से बहुत सूने होंगे,
कभी आंगन से पूछी दीवार किसे कहते हैं

हर किसी हो नहीं हासिल कूवत मुझे समझने की,
सूखंवर जानता है कलमकार किसे कहते हैं

निकले हो बाज़ार में हादसों कि किताब खरीदने,
जानते नहीं हो क्या अख़बार किसे कहते हैं

आप खुदा वाले हों या इश्क़ वाले हों,
आप जानते होंगे एहमियत ए दीदार किसे कहते हैं

अनस आलम ।


Monday, 24 June 2019

Shayari 2019 | एक बच्चा | ek baccha | ग़ज़ल 2019

Ek baccha chumta ik shajar accha laga
Shayad use parindon ka ghar accha laga

Zindagi guzari khubsurat raston ki talash me
Mujhe meri kabr tak ka safar accha laga

Bhatakta tha tez Awara hawaon ki tarah
Apnon k saath baitha to ghar accha laga

Zindagi ki ehmiyat maut ne samjhai hai
Mujhe Logon me marne ka darr accha laga

Anas alam .

एक बच्चा चूमता इक शजर अच्छा लगा
शायद उसे परिंदों का घर अच्छा लगा

ज़िन्दगी गुज़ारी खूबसूरत रास्तों की तलाश में
मुझे मेरी कब्र तक का सफर अच्छा लगा

भटकता था तेज आवारा हवाओं कि तरह
अपनों के साथ बैठा तो घर अच्छा लगा

ज़िन्दगी की एहमियत मौत ने समझाई
मुझे लोगों में मरने का डर अच्छा लगा

अनस आलम

Sunday, 23 June 2019

Shayari 2019 | yaad hai na | gazal 2019

Yaad hai na
Mere haathon me vo guldasta
Tere ghar tak jane wala rasta
Tera musse anjane me wabasta
Ye sab mujhse puchte hain k tu kahan hain

Yaad hai na
Tera ghanto tak mujhme ho jana mashgool
Tere haath se mera haath chhu jana jise kehti the tu bhool
Meri kitabon me dabe vo gulaab k phool
Ye yaaden musse puchti hain k tu kahan hai

Yaad hai na
Tera khidki se youn jhaankna
Apne haatho se teri badan ki silwato ko napna
Mera tujhe phli Bar chhune pe tera vo kanpna
Ye zindagi k kuch pehlu hamesha sawal karte hain k tu kahan hai

Yaad hai na
Teri Kushbo dava the aur mai koi bechain mrz
Jaise main namaazi aur tu koi namaaz-e-farz
Jaise tri bahen shrafat aur mai koi badnam karz
Aise hi kuch qisse puchte hain musse k kahan hai tu

Yaad hai na
Un haseen raaton me teri badan ka meri badan se vo pak wasta
Meri ungaliyon ka safar, teri peshani se paanzeb tak ka rasta
Us kagaz par likhi mohabbat k bantware ki dastaan
Aksar ye khayal musse puchte hain kahan hai tu
Yaad hai na
Yaad hai na

याद है ना,
मेरे हाथों में वो गुलदस्ता,
तेरे घर तक जाने वाला रास्ता,
तेरा मुझसे अनजाने में वाबस्ता,
ये सब मुझसे पूछते हैं के कहां है तू,

याद है ना,
तेरा घंटो तक मुझमें हो जाना मशगूल,
तेरे हाथ से मेरा हाथ छू जाना जिसे तू कहती थी भूल, 
किताबों में दबे वो गुलाब के,
ये यादें मुझसे पूछती हैं के कहां है तू,

याद है ना,
तेरा खिड़की से यूं झांकना,
अपने हाथो से तेरी बदन कि सिलवटों को मेरा नापना,
मेरा पहली बार तुझे छूने पर तेरा वो कांपना,
ये ज़िन्दगी के कुछ पहलू हमेशा सवाल करते हैं कहां है तू,

याद है ना,
तेरी खुशबू दावा थी और मैं कोई बेचैन मर्ज़,
जैसे मैं नमाज़ी और तू कोई नमाज़े फ़र्ज़,
जैसे तेरी बाहें शराफत और मैं कोई बदनाम कर्ज़,
ऐसे ही कुछ किस्से पूछते हैं मुझसे के कहां है तू,

याद है ना,
उन हसीन रातों में मेरी बदन का तेरी बदन से वो पाक वास्ता,
मेरी उंगलियों का सफर, तेरी पेशानी से पांज़ेब तक का रास्ता,
उस कागज़ पर लिखी मोहब्बत के बंटवारे की दास्तां,
अक्सर  ये खयाल मुझसे पूछते हैं के कहां है तू,
याद है ना।                                           ~अनस आलम
याद है ना

Friday, 21 June 2019

Shayari 2019 | Maan | maaai | ammi | mom | gazal 2019

Meri bewajah ki khwahishon ka khyaal karti  hai
Main der se ghar lautun to sawaal karti hai

ek farishte ka Saaya mujhpar hamesha maujood hota hai
Meri hifazat apni duaaon me filhaal karti hai

maidaan tak khud chhodne aati hai mujhe maa meri
ghar se akele door jaun to ishaal karti hai

meri tasveer ko apane kalaje se lagae rakhti hai
Vo mere lautne ka intezaar har saal krti hai

Zindagi ki thokaron se girte girte sambhalta hoon
 meri maa ki duaen aksar kamaal karti hai

Anas alam

मेरी बेवजह की ख्वाहिशो का ख़याल करती है
मैं देर से घर लौटू तो सवाल करती है

एक फरिश्ते का साया मुझपर हमेशा मौजूद होता है
मेरी हिफाज़त अपनी दुवाओं में फिलहाल करती है

मैदान तक खुद छोड़ने आती है मुझे मेरी मां
घर से अकेले दूर जाऊ तो इस्हाल करती‌ है

मेरी तस्वीर को अपने कलेजे से लगाए रखती है
वो मेरे लौटने का इंतज़ार हर साल करती है

ज़िन्दगी की ठोकरों से गिरते गिरते संभालता हूं
मेरी मां की दुआएं अक्सर कमाल करती हैं

अनस आलम

Wednesday, 19 June 2019

Shayari 2019 | टेप रिकॉर्डर | tape recorder | gazal 2019

tape recorder pe bajti gazlen
Tumhara mere hathon ko chune ki koshish
Chaaye ki chuskiyon k saath tumhara wahi gazal gunguna
Yahi to ishq hai mera tumhara

Tumhe bass dekhte rehna mera
Jismon ki khwahish se bht upar uthakar
Tumhare kaande se neeche utarate aanchal ko sawarna mera
Yahi to ishq hai mera tumhara

Tumhara bekhayali k saath simat jaana meri bahon me
Subha mere chehre pe apni zulfon se barish karna
Har roz mujhe aankh khulte hi dekhne ki dua karna
Yahi to ishq hai mera tumhara

Mera Jaan buch ke betarteebi se kapde pehenna
Aur tumhara har Baar mri kameez k siron sahi karna
Aur mere balon ko apne haathon se sawarna
Yahi to ishq hai mera tumhara

Tumhara mujhe youn chhod kar khuda k pass chale jana
Mera khuda se apni duaaon me phir tumhare hone ki guzarish karna
Aur ab bhe do pyaalon me chaaye lekar wahi gazal sun na
Yahi to ishq hai mera tumhara

anas alam

वो टेप रिकॉर्डर पर बजती ग़ज़लें
तुम्हारा मेरे हाथो को छूने की कोशिश
चाए की चुस्कियों के साथ तुम्हारा वही ग़ज़ल गुनगुनाना
यहीं तो इश्क़ है मेरा तुम्हारा

तुम्हे बस देखते रहना मेरा
जिस्मों की ख्वाहिशात से, बहुत ऊपर उठ कर
तुम्हारे कंधे से नीचे उतरते आंचल को संवारना मेरा
यही तो इश्क़ है मेरा तुम्हारा

तुम्हारा बेख़याली के साथ, सिमट जाना मेरी बाहों में
सुबह मेरे चेहरे पर अपनी जुल्फों से बारिश करना
हर रोज़ मुझे आंखे खुलते ही देखने की दुआ करना
यही तो इश्क़ है मेरा तुम्हारा

मेरे जान बूच कर बेतरतीबी से कपड़े पहनना
तुम्हारा हर बार, मेरी कमीज़ के सिरों को सही करना
और मेरे बालों को अपने हाथों से संवारना
यही तो इश्क़ है मेरा तुम्हारा

तुम्हारा मुझे यूं छोड कर खुदा के पास चले जाना
मेरा खुदा से अपनी दुवाओ मे फिर तुम्हारे होने की गुज़ारिश करना
और अब भी, दो प्यालों में चाए ले कर वही ग़ज़ल सुनना
यही तो इश्क़ है मेरा तुम्हारा

अनस आलम।।

Tuesday, 18 June 2019

Zindagi ki shayri me zindagi ki mehek | kulhadi lekar jab ek shakhs nazar aaya

Kulhadi le kar jab koi shakhs nazar aaya
Badi mushkilon me bechara ek shajar aaya

Unki bhe kurbani ko kisi shahadat se kam na samjho
Bahut jangal kate tab jake ek sheher aaya

Log kisi na kisi sahare se pahunch gaye mnzil tk
Main paidal tha meri jholi me bas safar aaya

Bacchon ko khila kar khali pet sone me khushi mili
Main khush tha mujhpe baap hone ka asar aaya

Hawaon ne bataya usne pata badal liya hai
Ek arsa hua is gali me koi rehguzar aaya

कुल्हाड़ी ले कर जब कोई शख्स नज़र आया,
बड़ी मुश्किलों में बेचारा इक शजर आया

उनकी भी कुर्बानी को किसी शहादत से कम न समझो,
बहुत जंगल कटे तब जाके एक शहर आया

लोग किसी न किसी सहारे से पहुंच गए मंज़िल तक,
मैं पैदल था मेरी झोली में बस सफ़र आया

बच्चों को खिला कर ख़ाली पेट सोने में खुशी मिली,
मैं खुश था मुझपे बाप होने का असर आया

हवाओं ने बताया उसने पता बदल लिया है,
एक अरसा हुआ इस गली में कोई रेहगुज़र आया

Anas alam 

Monday, 17 June 2019

Life is full of love | poetry | zindagi bilkul

ज़िन्दगी बिल्कुल अरमानों पर निकल रही है,
मेरी आखरी आह उसकी ज़ानों पर निकाल रही है

ग़ज़लों में उसे उतार पाना अब मुश्किल है,
दिल की सारी भड़ास फसानों पर निकल रही है

मुझे तो मरने के बाद भी सुकून न रहा,
रूह जयज़े केलिए शमशनों पर निकल रही है

ये बस जाने वाली हैं कोई इन्हें रोक लो,
खुशियां घर ढूंढने मकानों पर निकल रही हैं

उसकी आंखे क्या कम थे तेरे लिए "आलम"
कि तेरी तलब अब मैखानों पर निकल रही है

अनस आलम।

Zindagi bilkul armanon par nikal rahi hai,
Meri aakhri aah uski zanon par nikal rahi hai

gazlon me use utar pana ab mushkil hai
Dil ki saari bhadaas armanon par nikal rahi h

mujhe to marne k baad bhe sukoon na raha
Rooh jayze kliye  shamshano par nikal rahi h

Ye hath se jane wali hain koi inhe rok lo
Khushiya ghar dhunhne makano par nikl rhi h

Uski aankhe kya kam the tere liye "alam"
Ki teri talab ab maikhanon par nikal rahi h

Sunday, 16 June 2019

Happy father's Day

Father day पर मैने कुछ शेर लिखने
का दोस्तो से वादा किया था। पर आज जब पापा की पुरानी
डायरी कि ग़ज़लों पर एक नज़र पड़ी तो एक चोटी
सी ग़ज़ल निकाल कर आई जिसे सबसे शेयर करने का दिल किया।

हर मुसीबत मे घना साया बना रहता था।
बाप का नाम एक सरमाया बना रहता था।

ऐसा लगता था मेरे ख्वाब की ताबीर से थे।
मेरी खुशियों से उनका बैग भरा रहता था।

मेरे पावो को भी थकने नही देते थे वो।
उनके कान्धे पे मेरा बोझ पड़ा रहता था।
                    डा अफरोज़ आलम।

Saturday, 15 June 2019

अपने | mere Apne mere हाथ से जाने लगे |

Mere apane mere haath se jane lage,
Jaise ujale raat se jane lage

Main sochata tha vo laut aayega,
Vi mujhe chod kar Kainaat se jane lage

Jo dhundhte the mera kandha sar rakhne ko,
Vo bach kar mujhse ehteyaat se jane lage

Uska ana baithna rate meri baho me guzarna,
Ye mere haseen pal sab hayaat se jane lage

Anas alam

मेरे अपने मेरे हाथ से जाने लगे,
जैसे उजाले रात से जाने लगे

मैं सोचता था वो लौट आएगा,
वो मुझे छोड़ कर कायनात से जाने लगे

जो ढूंढते थे मेरा कांधा सर रखने को,
वो बच कर मुझसे एहतियात से जाने लगे

उसका आना, बैठना, रातें मेरी बाहों में गुज़ारना,
ये मेरे हसीन पाल थे सब हयात से जाने लगे

अनस आलम

Friday, 14 June 2019

In hawaon ko roz khabardar karte hain | gazal |

इन हवाओं को रोज़ खबरदार करते हैं,
हम दियों का कारोबार करते हैं

मोहब्बत को हर बार शर्मसार करते हैं,
जो लोग सिर्फ जिस्मों की बाज़ार करते हैं

कोई किसी की कहानी में बुरा नहीं बनना चाहता,
यहां सब खुदको शरीफों में शुमार करते हैं

तुमसे वफ़ा करके कुछ हासिल नहीं हुआ,
फिर भी हर बार तुमपे ऐतबार करते हैं

मुझे खौफज़दा करने में नाकाम हो जाते है,
तब ये उसूलों पर वार करते हैं

अनस आलम

In hawaon ko roz khabardar karte hain,
Ham diyon ka karobar karte hain

Mohabbat ko har bar sharmsar karte hain,
Jo log sirf jismon ki bazar karte hain

Koi kisi ki kahani me bura nahin banna chahta
Yahan sab khudko shareefon me shumaar karte hain

Tumse wafa karke kuch bhe hasil na hua,
Phir bhi har bar tumpe aitbar karte hain

Mujhe khaufzada karne me nakam ho jate hain,
Tab ye usulon par war karte hain

Anas alam



Thursday, 13 June 2019

Jismon ki nomaish | gazal |

Jismon ki nomaishen sare bazaar hone lagi, Hawas besharmi k libaas me tayyar hone lagi Yahan ma ka lagaya tulsi ka paudha tha, Is aangan me kabse Dewar hone lagi Msalsal ladta rha tufanon se apne wajod k liye, Ek wakt aaya aandhiyan apni yar hone lagi Roz naya shakhs ulat palat kar chala jata hai, Meri zindagi, zindagi na hui akhabar hone lagi जिस्मों की नोमाइश सरे बाज़ार होने लगी, हवस बेशर्मी के लिबास में तय्यार होने लगी यहां मां का लगाया तुलसी का पौधा था, इस आंगन में कबसे दीवार होने लगी मुसलसल लड़ता रहा तूफ़ानों से अपने वजूद के लिए, एक वक्त आया आंधियां अपनी यार होने लगीं रोज़ नया शख्स उलट पलट कर चला जाता है, मेरी ज़िन्दगी, ज़िन्दगी न हुई अख़बार होने लगी अनस आलम।

Wednesday, 12 June 2019

Poetry on child labours | unki nazuk si palkon par khwaab rakh kar aaya hoon |

Unki nazuk si palkon par khwaab rakh k aaya  hoon,
Mazdoor bachhon k hathon par kitaab rakh k aaya hoon

Gali se mere mela to bahut door nahin magar,
 jeb me ghar chalane ka hisab rakh k aaya hoon

Uske pass shohraten the ghar tha makan tha,
Main apane saath apna khilauna kharaab rakh k aaya hoon

Vo savaal karte hain tumhe takleef hi kya hogi,
Gareebi, bhookh, maan k aansu javaab rakh k aaya hoon.

Anas alam


उनकी नाज़ुक सी पलकों पर ख्वाब रख कर आया हूं, 
मज़दूर बच्चों के हाथों में किताब रख कर आया हूं 

गली से मेरे मेला तो बहुत दूर नहीं मगर, 
जेब में घर चलाने का हिसाब रख कर आया हूं 

उसके पास शोहरतें थी घर था मकान था, 
मैं अपने साथ अपना खिलौना खराब रख कर आया हूं

वो सवाल करते हैं, तुम्हे तकलीफ ही क्या होगी, 
ग़ुरबत, भूख, मां के आंसू, जवाब रख कर आया हूं 


अनस आलम

Tuesday, 11 June 2019

Kal raste me gam mil gaya tha usse gazal keh dali | gamon ki jab intehan ho jati hai tab likhta hoon |

गमों की जब इंतहां हो जाती है तब लिखता हूं
उसकी खुशबू सांसों में रवां हो जाती है तब लिखता हूं

पूरे बाग़ में सिर्फ मुझ एक शजर के जब
खिलाफ़ ये हवा हो जाती तब लिखता हूं

सियाह रातों में चरगों का अचानक से बुझ जाना
वो आंख खोलती है सुबह हो जाती है तब लिखता हूं

उसकी आंखे, अदाएं, बाहें, बहुत कुछ है लिखने को मगर
उसकी उंगलियां जिस्म पर निशां हो जाती हैं तब लिखता हूं

अनस आलम




Sunday, 9 June 2019

Justice for twinkle | #justicefortwinkle

आज व्हट्साप के स्टेटस पर लगी एक पोस्ट देख कर दिल टूट गया, लगा कि मैं उस हिंदुसातन का हिस्सा ही नहीं हूं जिसे महात्मा गांधी ने बसाया था और तमाम मुल्क के हिन्दू मुसलमान स्वतन्त्रता सेनानियों ने बसाया था ।
अगर आप किसी बच्ची के रेप पर भी हिन्दू मुस्लिम सियासत करते हैं तो मेरे दोस्त आप ज़ेहनी तौर पर बीमार हैं, चाहे वो #ट्विंकल हो चाहे वो #आसिफ हो ये दोनो बच्चियों का जिस्म एक इंसान का था न कि किसी हिन्दू या मुसलमान का और उस जिस्म को नोचने वाला खरोंचने वाला सिर्फ एक शैतान था, मेरी आप सबसे गुज़ारिश है किसी भी हिन्दू मुस्लिम विवाद पर डाली गई पोस्ट को आगे न बढ़ाएं।

#justicefortwinkle


Saturday, 8 June 2019

Dil meri na sune par phir bhe tujhe yaad karta hoon | main apni nazmon ko likh k mita deta hoon |

मैं अपनी नज़्मों को लिख के मिटा देता हूं,
उनको तेरा ज़िक्र न करने की सज़ा देता हूं

जब कभी याद तेरी बहुत आ जाती है,
कमरे में तेरी एक तस्वीर सजा देता हूं

बस तेरी एक कमबख्त खिड़की की खातिर,
गली के दो चार चक्कर लगा देता हूं

ये खाली कमरा जब काटने को दौड़ता है,
तेरी आवाज़ टेप रिकॉर्डर में बजा देता हूं

तेरे हाथो का जायका मिल तो नहीं पता,
फिर भी तक हार कर चाए बना देता हूं

अनस आलम।

Friday, 7 June 2019

Tum haath to thamo mera | tum prem ho tum Preet ho |

एक अरसे से मकान सुनसान है,
अब आजाओ के दिल वीरान है

तुम एक बार हाथ तो थामो,
ये सफर बहुत आसान है

मेरी कश्ती वो डुबो नहीं सकता,
उस समंदर से मेरी पहचान है

ग़म मेरे वजूद का हिस्सा है,
खुशियां कुछ वक़्त की मेहमान हैं

शोहरत ले कर कब्र में जाएगा नहीं,
फिर क्यूं इतना मग़रुर इन्सान है

तुमहारे नाम से एहतियात बरतता हूं,
फिसल जाती है आख़िर ज़ुबान है

अनस आलम।

Wednesday, 5 June 2019

2019 gazal | kheto me lehlahati fasal bolti hai |

खेतों में लहलहाती फसल बोलती है,
ज़बान खामोश रहती है ग़ज़ल बोलती है

रोकने वाली आंधियों की पहचान क्या बताऊं,
हर मोड़ पर ये चेहरा बदल बोलती हैं

समझने वाले चाहे समझे न समझे,
लब खामोश रहते है शकल बोलती है

क्या सोचते हो दबा ले जाओगे इन्हें तुम,
ये नए ज़माने की नसल बोलती है

अनस आलम।




Monday, 3 June 2019

A poetry by love | chahunga main tujhe hardam hamesha | hawa apni hadd se age badne |

हवा अपनी हद से आगे बढ़ने न लग जाए,
कहीं उसका दुपट्टा बेफिक्री से उड़ने न लग जाए

रोज़ बुला लेता हूं उसको कंकड़ फेंक कर,
आज कहीं छत पर उसकी अम्मी चढ़ने न लग जाए

चौराहे पर खड़े रहना मेरा यूं ही नहीं है,
कहीं कोई और उसकी राह से गुज़रने न लग जाए

हाथ उसने भी थमा था मेरा बड़ी मुश्किलों से,
मैं डरता था, वो ज़माने से डरने न लग जाए

लोग इश्क में बिछड़ कर जान दे देते हैं,
कहीं वो मुझसे ऐसा इश्क करने न लग जाए

चांद उसकी सादगी पर बड़ा हंसा करता था,
अब उसे डर है के वो सवरने न लग जाए

अनस आलम
https://anasafroz.blogspot.com/2019/05/mulakat-ek-intezaar-umr-bhar-ka.html?m=1

Sunday, 2 June 2019

Aligarh ke shayar shameem bastavj sahab

अलीगढ़ के मारूफ़ शायर शमीम बस्तवी साहब रमज़ान के महीने में बाज़ार से लौट रहे थे।हाथ में एक थैली थी जिसमें कोई सामान था।रास्ते में एक पहचान वाले मिल गए।
पूछा:मौलाना...! क्या ले कर जा रहे हो?
उन्होंने कहा: ऐसी चीज़ जिसके खाने से रोज़ा नहीं टूटता.."
उन साहब ने कहा: ऐसी चीज़ों का इल्म मौलाना लोग अपने पास छुपा कर रखते हैं और हमें बताया जाता है कि कुछ भी खाओ, रोज़ा टूट जाएगा।
ये तो नाइंसाफी है। हमें भी खिलाएं। ज़िद पर अड़े दोस्त को उन्होंने समझाया कि रहने दो। मत खाओ। पर वे माने नहीं।
शमीम साहब ने थैली खोली तो उसमें जूते थे...

Friday, 31 May 2019

A poetry full of love | gazal | ae husna meri |

शीन सी पेशानी तेरी क़ाफ़ सी नाक है
ए हुस्ना मेरी तेरा अंदाज बेबाक है

सिरहाने लेट के उसके सोचा करता हूं
ये चमकती सी झील है या उसकी आंख है

दाग़दार न हो जाए इसलिए साथ चलता हूं
औरत का दामन है थोड़ी कोई मज़ाक है

उसका अंगड़ाइयां लेना और मेरा देखते रहना
उसकी बदन मानो पेड़ की लचकती शाख है।

अनस आलम
https://anasafroz.blogspot.com/2019/05/tehzeeb-poetry-gazal-mehboob-se-baaten.html?m=1

Tehzeeb poetry | gazal mehboob se baaten Karti hui |


Gazal hamesha se ek khoobsurat ehsaas ka zariya rahi hai english zabaan me isi poetry bhe kehte hain ham ise tehzeeb se bhe jod sakte hain, vo thezeeb jo ise kabhi sikhani nahin padti ye khud b khud tehzeeb k raste apnati hai | tehzeeb poetry |

Thursday, 30 May 2019

A poetry by love of heart | love poetry | gazal | maine Cigarette jalai vo yaad aane laga |

उसके वापस आने का यकीन जाने लगा,
मैनें सिगरेट जलाई, वो याद आने लगा

बागों में तितलियां थीं तितलियों में कई रंग,
फिर मुझे उसका दुपट्टा याद आने लगा

कितना मासूम था उसका हर एक आंसू,
मेरे दामन पे गिरा तो दाग़ मिटाने लगा

इस ख़ाली कमरे से पूछो मैं कैसा था,
वो तो तुम आगई मैं हसने गाने लगा

महफिलों से मेरा कोई वास्ता था ही नहीं,
उसकी सोहबत में आके मैं भी शेर सुनाने लगा

अनस आलम।


Tuesday, 28 May 2019

Chehre ho subha zulfon ko shaam | gazal |

चेहरे को सुबह जुल्फों को शाम बना कर देखते हैं,
घूंघट को अदब आंखो को जाम बना कर देखते हैं

सफर की शुरुआत और मंज़िल की तलाश में हूं,
तेरे होठों को आगाज़ सांसों को अंजाम बना कर देखते हैं

दुनिया के तमाम पेशों को आज ठुकरा कर,
जुल्फों को संवारना एक काम बना कर देखते हैं

दर्द, रुसवाई, सितम, चाहत, जुदाई, सब छोड़ कर,
तेरी आंखो पर कोई कलाम बना कर देखते हैं।

अनस आलम।

Ziya sahab ko arbi sikha di | kissa |

पडोसी ज़िया साहब हाथों में बड़ी बड़ी, सामान से भरी, थालियां लिए जा रहे थे। आज चाँद रात है, जैसे ही हमारे सामने से गुज़रे, हमने कह दिया, ज़िया साहब,   रमज़ान मुबारक !
झट से रुके, पास बुलाया और बेहद सख़्त लहजे में बोले : आप तो पढ़े लिखे लगते हैं! हमने भी सर झुका कर जवाब दिया: जी कुछ तो पढाई की है।
ज़िया साहब भी तुनक कर कहने लगे-- देखिये रमादान होता है सही लफ्ज़, रमज़ान नहीं, अरबी का लफ्ज़ है अरबी की तरह बोला जाना चाहिए। समझे के  नहीं?
हमारी ग़लती थी सर झुका के मान ली और अदब से कहा -- आप सही कह रहे हैं "धिया साहब"!

वो फ़ौरन चौंके, कहने लगे "अरे ये धिया कौन है".
मैंने कहा "आप हैं"  वो बोले अरे भाई मैं ज़िया हूँ।
मैंने कहा जब रमज़ान -- रमादान हो गया तो फिर ज़िया भी तो धिया हो जाएगा। ये ज़िया भी तो अरबी लफ्ज़ है। ज़ोआद का तलफ़्फ़ुज़ ख़ाली रमादान तक क्यूँ महदूद हो
ख़ैर बात ख़त्म हुई, ज़िया साहब जाने लगे तो हमने पीछे से टोक दिया...."कल इफ्तारी में बकोड़े बनवायेगा तो हमें भी भेज दीजियेगा"
फ़ौरन फरफरा के पलटे--ये बकोड़े क्या चीज़ है।
हमने कहा अरबी में "पे" तो होता नहीं, इसलिए पकोड़े भी बकोड़े हुये, पेप्सी भी बेप्सी हुयी।
एक दम तैश में आ गए....तुम पागल हो गए हो।
हमने कहा...पागल नहीं बागल कहिये.
ग़ुस्सा उनका सातवें आसमान पर चला गया, कहने लगे अभी चप्पल उतार कर मारूंगा।
मैंने कहा चप्पल नहीं शब्बल कहिये, अरबी में "च" नहीं होता। उनका ग़ुस्सा और बढ़ गया कहने लगे 'अबे गधे बाज़ आ जा'।
मैंने कहा बाज़ तो मैं आ जाऊँगा लेकिन गधा नहीं "जधा" कहिये। अरबी में "ग" भी नहीं होता।

अब उनके जलाल की कोई थाह नहीं थी, कहने लगे "आख़िर अरबी में होता क्या है"
कम हम भी नहीं हैं...ज़बान हमारी भी फिसल जाती है। बस कह दिया "आप जैसे शूतिया".

वैसे आप सबको रमज़ान की आमद की तमाम मुबारकबाद, इस बार कोशिश करें रोज़ा नफ़्स का हो, सिर्फ पेट का नहीं।

#उर्दू_को_जीने_दो

Monday, 27 May 2019

Ishq me neelam ho jao | gazal |

मेरे होठों पर एक कांपता सवाल सा रह गया, 
मेरी बाहों में तू, ये खयाल सिर्फ खयाल सा रह गया 

वो हमे मिटा कर सोचते हैं खत्म हमारा वजूद, 
हम तो रुखसत हो गए हमारा इश्क़ मिसाल सा रह गया

ज़माना सर्द हवाएं बन कर तुझे छूना चाहता था, 
 मैं ताउम्र तेरी बदन पर शाल सा रेह गया 

 हर रात  ख्वाबों में जी भर कर जिया तुझे लेकिन, 
लबों पर कुछ ख्वाहिश - ए - वीसाल सा रह गया 

मेरी मोहब्बत पाक़ीज़ा है इसमें कोई शक नहीं लेकिन, 
उस रात तुम्हें न छूने का मलाल सा रह गया 

ज़माना क्या जाने तू मुझसे लिपट कर रोई थी,
लोगों ने सिर्फ ये देखा कमीज़ पर कुछ बाल सा रह गया 

सब ने  देखा के तुमने भरी महफिल में मुझसे हाथ  छुड़ाए, 
मैंने देखा तेरे चेहरे पर ज़ाहिर दिल का हाल सा रह गया 

अनस आलम



Sunday, 26 May 2019

Ek hakikat | gazal ek sacchai |


Magroor insaan | akela |

अपनों में ही खुद को मगरूर कर रक्खा है,
इंसान ने खुद को कितना मजबूर कर रक्खा है

पुराने किस्सों से कहां इनका वास्ता रह गया है,
बच्चों ने बुजुर्गों से खुद को दूर कर रक्खा है

खामोश बंद कमरे में गुमनाम होना चाहता हूं,
ये तो मेरी तेहरीरों ने मुझे मशहूर कर रक्का है

ज़रूरत ही नहीं सजने संवरने की उसको,
मुस्कुराहट को जो चेहरे का नूर कर रक्खा है

कदम उठाया है मंज़िल की तरफ तो खौफ कैसा,
रास्तों के कांटों को हमने मंज़ूर कर रक्खा है

अनस आलम


Saturday, 25 May 2019

अजीब कशमकश

मैं एक अजीब किस्म के सन्नाटे को देख और सुन सकता हूं, इस हजारों की भीड़ में जिनका शोर कानों को चुभता है,
मुझे नजर आता है कि लोग अपनी आंखो पर पट्टी बांधे भी देख सकते हैं, क्या उनकी आंखो की पट्टी सिर्फ मुझे नजर आती है, क्या उनकी आंखो की पट्टी सिर्फ उन्हें कोई एक चीज देखने से रोक रही है, इन सब के जिस्मों पर लिबास एक रंग का क्यूं है, ये कौन लोग हैं इनकी आवाज़ का नारा मेरी रूह को देहला क्यूं रहा है, मैं दूर खड़ा एक आग को धीरे धीरे शहर की ओर बढ़ता देख रहा हूं इस आग की आंच कुछ लोगों को बहुत ठंडक पहुंचा रही है हालांकि मैं देख सकता हूं यही आग उनके जिस्म से चमड़ी को बहुत बेदर्दी से अलग कर रही है मैं उस आग में जलते लोगों का दर्द महसूस कर सकता हूं पर शायद उनकी आंखों की पट्टी उन्हें वो आग देखने से रोक रही है इस आग को बुझा पाना नामुमकिन सा लगता है, मैं बस बेसहारा हो कर अपनी और अपनों की तबाही देख रहा हूं।

अनस आलम

Friday, 24 May 2019

Meri hadon ko aamane koi aaya to tha | gazal |

मेरी हदों को आज़माने कोई आया तो था,
इस समंदर को हाथों में उठने कोई आया तो था

मुद्दातों बाद आज किसी के क़दमों कि आहट सुनी,
मेरे इस वीराने को घर बनाने कोई आया तो था

सबको चौखट से बाहर कर दिया दगाबाज समझ कर,
उसमे कोई मेरे साथ रह जाने आया तो था

किसी को अपनाना तो चाहता हूं मगर दिल नहीं मानता,
पिछले बरस मुझे कोई बहुत तड़पने आया तो था

खूबसूरत थी वो रात मुझे याद है आज भी,
सर्द आंहों को आंच बनाने कोई आया तो था

अनस आलम



Thursday, 23 May 2019

Gazal | ek dard |

ये सैलाब मेरी दहलीज तक आ ना पाएगा,
मैं वो तिनका हूं, एक समंदर में समा ना पाएगा

जमाना चाहे बिक जाए आज की सियासत के हाथों,
मेरा ज़मीर मेरा पिंदार गवा ना पाएगा

अंधेरा ही रहने दो इन नफरत की गलियों में,
ये शहर कभी मोहब्बत कमा ना पाएगा

नफरत हावी है तेरे ज़हन पर इस क़दर,
अपनी आंखे खोल तू मुझसा हमनवा ना पाएगा

अनस आलम




Kulfi wale chacha

मेरी बचपन की हर याद की तरह ये याद भी धुंधली होने को थी कि मैंने उस आदमी को एक आइसक्रीम की गाड़ी को दोपहर कि चिलचिलाती धूप में खींचते देखा, हल्के सावले रंग का ये आदमी जिसके जिस्म पर सुती कपड़े का एक मैला सा कुर्ता था पैरों में वही पुराने जुते और सर पर एक फिरोजी गमछा था मैं जरा हिचकिचाते उसकी तरफ बढ़ा और कहा,

"चाचा गरी के बुरादे में लपेट कर वो 2 रुपए वाली कुल्फी देना"

वो मुझे एक टक देखने लगा चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट लिए मुझे पहचानने की नाकाम कोशिश करते हुए उसने कहा

"बहुत देर कर दिए बेटा, 8साल पहले आए होते तो दे देते"

मैं ये सोच ही रहा था कि ये इंसान आज भी वही काम  कर रहा है तब तक उसने कहा "का हुआ बेटा का सोचने लगे

इस आदमी की आंखो में वही पुरानी चमक थी उसकी आवाज़ में वही पुराना अंदाज़ मुझे इस आदमी से ज़्यादा दिलचस्पी उसकी आवाज़ में थी जिससे वो बच्चों को बुलाया करता था "ले ले ले ले ले कुल्फी ई ई ई ई ई ई"

मैंने कहा चाचा क्या बात है आपका ठेला तो आज एक फर्स्ट क्लास गाड़ी में तब्दील हो गया है अब भी बच्चों को क्या वही आवाज़ें दे कर अपनी तरफ बुलाते हो,
उसने कोई जवाब नहीं दिया बस मुस्कुरा कर रह गया फिर मैंने पूछा क्या आपने पहचाना मुझे तो कहने लगा हां बेटा मुझे याद है तुम हमेशा 2 रुपए की कुल्फी खाते थे और अपनी कमीज पर गिरा लेते थे और कहते थे चाचा ऐसी कुल्फी बनाओ जिसे ये सूरज ना पिघला पाए,
मुझे जान कर बहुत कुशी हुई कि मैं उसे याद हूं फिर हमने एक दूसरे का हाल चाल लिया और वो अपनी राह को चल दिया मैं भी अपने रास्ते चलने लगा कुछ सोच ही रहा था कि पीछे से एक आवाज़ आई
"ले ले ले ले ले  कुल्फी ई ई ई ई ई ई"

फिर मैंने पलट के देखा तो हमारी नज़रें मिली और मैं बस मुस्कुराते हुए अपनी राह पर आगे बढ़ने लगा,जाने अंजाने में वो कुल्फी वाला एक और याद दे गया एक खूबसूरत याद।

अनस आलम।





Tuesday, 21 May 2019

Election | चुनाव एक समोसा |

समोसे कि दुकान पर खड़े 2 लोग बहुत देर से एक दूसरे पर अपनी राय थोपने में लगे थे पहला आदमी अपनी चाहने वाली पार्टी की तरफदारी कर रहा था तो दूसरा आदमी अपनी चाहने वाली पार्टी की तरफदारी कर रहा था, और ये तमाशा कुछ दूर पर खड़ा बंटी बड़े गौर से देख और सुन रहा था,

उन दोनो आदमियों की बहस करीब आधे घण्टे चली मगर उस बहस का कोई नतीजा नहीं निकल सका और आखिर में दोनो आदमी 2-2 समोसे खा कर वहां से रवाना हो लिए इस नज़ारे का तमाशबीन वो समोसे वाला भी था,

बंटी बेचारा नए उम्र का लड़का उसे समझ नहीं आता था कि कौन सही है और कौन गलत, तब समोसे वाले ने उससे कहा "क्यों बेटा क्या बात है कुछ घुसा दिमाग में"

इतना सुनते बंटी मुस्कुराने लगा और बोला नहीं चाचा कुछ समझ नहीं आता कौन देश को लूटना चाहता है और कौन देश को आबाद करना चाहता है?

तब समोसे वाले ने कहा "अगर तुम्हे मेरे यहां के समोसे और मांगनी राम के यहां के समोसों में फर्क करना हुआ तो कैसे करोगे?
बंटी बोला "पहले आपके यहां के समोसे खाऊंगा और फिर मांगनी राम के फिर फैसला लूंगा की क्या फर्क है और दोनो में से कौन ज़्यादा अच्छे समोसे है"

समोसे वाला झट से बोला "बिल्कुल सही ये सियासत भी समझ लो एक समोसा ही है तुम्हे दोनो पक्षों को आंकना होगा अपनी मज़हबी भावना को एक किनारे रख कर तुम्हे दोनो को उनके काम के मुताबिक आंकना होगा तुम्हे किसी के खयालों को खुद पर हावी नहीं होने देना है तुम्हे खुद फैसला लेना है ।

बंटी बोला आप सही कह रहें हैं मगर मीडिया का क्या?

तो समोसे वाले ने कहा "मान लो ये दोनो को थोड़ी देर पहले बहस कर रहे थे ये दोनो एक दूसरे के खिलाफ खड़े हुए नेता है और मैं मीडिया वाला" इन दोनो ने क्या किया आधे घंटे बहस किया और मेरा 2-2 समोसे का फायदा कर गया,
समोसेा सुनते ही बंटी ज़ोर ज़ोर से हसने लगा और 2समोसे उसके यहां से ले गया और रास्ते में मांगनी राम के समोसे भी चखते गया।

अनस आलम

Gazal क्या है ?



ग़ज़ल क्या है? 

लफ़्ज़ों में बायां किए गए वो एहसास जो आप किसी को हासिल करने की ख्वाहिश में कहते है।
या यूं कहूं की बस मेहबूब से बातें करना ही ग़ज़ल है,या एक खूबसूरत एहसास जो सीने में उतार गया हो, 
 ग़ज़ल वो है जो एक शायर तब कहता है जब उसे कोई ऐसी चीज़ें दिखे समाज में जिसे वो अपने सुखनवरों को बताना चाहता हो, ये किसी औरत पर हो रहे ज़ुल्म के बारे में भी हो सकता है या रोज़ भूखे सो रहे गरीब बच्चों के लिए, एक वक्त था जब ग़ज़ल पर बड़ी बंदिशें थी कि वो सिर्फ इश्क़, मोहब्बत, यार, रकीब, की गलियों में भटक सकती थी उसे इजाज़त नहीं थी कि वो अपने खुशबूदार अल्फाजों से किसी मां के दर्द या खुशी को बायां कर सके या किसी किसान के पसीने की एक बूंद का वज़न बायां कर सके क्यूं ग़ज़ल को मेहबूब के क़दमों में सजा कर रखा जाए क्यूं ग़ज़ल को एक बेशकीमती हीरा बना कर तिजोरियों में रखा जाए, ज़रुरत तो ये है के इसे भटकने दो गलियों में चौबारों पे ताकि ये ग़ज़ल किसी चौराहे पर फटे से कपड़ों में फूटपाथ पर सो रहे एक गरीब बच्चे को अपनी बाहों में भर कर उसका दर्द इस समाज इस दुनिया के सामने लाएं, ज़रुरत तो ये है कि ग़ज़ल एक शहर की तरह हो और उस ग़ज़ल के शेर सड़कों की शक्ल इख्तियार कर लें ताकि हर शेर उस शहर की बेबसी देख पाएं।

अनस आलम।

Monday, 20 May 2019

Mulakat | ek intezaar umr bhar ka |

सिलसिला मुलाकात का इंतजार में रह गया,
ज़माने से अनजान मैं प्यार में रह गया

सब ने इश्क़ की क़ीमत लगाई और हासिल कर लिया,
सौदेबाज़ी से बेख़बर मैं बाज़ार में रह गया

ये इश्क है इससे‌ ज़रा ख़बरदार रहिये जनाब,
रांझे मिट गए अनारकलियों का दिल दिवार में रह गया

वो तो सीख गए मेरे बग़ैर ज़िन्दगी गुज़ारना,
मेरा सफर अबतक जुस्तजू - ए - यार  में रह गया

शमशीरें तय्यर थी सबकी जंग की खातिर,
मैं शायर था कूं - ए - यार में रह गया

अनस आलम।


Saturday, 18 May 2019


गुज़रे वक्त का वो फसाना याद आता है,
छुप छुप के मिलने का ज़माना याद आता है

कंबल में हिचकिचाते दो जिस्मों का,
लिपट जाने का बहाना याद आता है

शर्म  की  उस   चाशनी  में  डूबी  वो आंखें, 
फिर बेपरवाही से जुल्फों का बिखर जाना याद आता है

जिस्मों की बहकी सी कुछ ख्वाहिश लिए,
रातों का गुज़र जाना याद आता है

उस  गली की  यादें अब  तक ताज़ा हैं,
खिड़की निहारता एक लड़का दीवाना याद आता है

सफर में कांटों का सिलसिला बढ़ता रहा,
कांटों पर चल के तेरा निभाना याद आता है

अनस आलम

Wednesday, 15 May 2019

Ek gazal | तेरी आंखो में हमेशा नमी नज़र आती है |

तेरी आंखो में हमेशा नमी नज़र आती है,
तेरे वजूद में मेरी कमी नज़र आती है

बरसात उस मगरूर आसमान के हाथो में है,
बहुत लाचार मुझे ये ज़मीं नज़र आती है

हस के सह लेती है तेरा हर सितम,
ये औरत अंदर से ज़ख्मी नज़र आती है

तुझे आते होंगे नज़र कई रंग यहां पर,
मुझे तो बस एक सरजमीं नजर आती है

अनस आलम



Thursday, 9 May 2019

Magroor insaan |अपनों में ही खुद को महरूर कर रक्खा है |

अपनों में ही खुद को मगरूर कर रक्खा है,
इंसान ने खुद को कितना मजबूर कर रक्खा है

पुराने किस्सों से कहां इनका वास्ता रह गया है,
बच्चों ने बुजुर्गों से खुद को दूर कर रक्खा है

खामोश बंद कमरे में गुमनाम होना चाहता हूं,
ये तो मेरी तेहरीरों ने मुझे मशहूर कर रक्का है

ज़रूरत ही नहीं सजने संवरने की उसको,
मुस्कुराहट को जो चेहरे का नूर कर रक्खा है

कदम उठाया है मंज़िल की तरफ तो खौफ कैसा,
रास्तों के कांटों को हमने मंज़ूर कर रक्खा है

अनस आलम।

Tuesday, 7 May 2019

Mere khayalon ka sara jahaan le gaye | gazal |

मेरे खयालों का ये सारा जहान ले गए,
ज़मीन इंसानों ने ली परिंदे आसमान लेगए

खुद को अपनी नज़रों में गिरा हुआ पता हूं,
मेरे अपने इरादे मेरा ईमान लेगए

मैं सूरज हूं मुझे शाम को ढलना ही है,
पागल जुगनू सोचते हैं ये मेरा मुकाम लेगए

सब साथ मिल कर जलें तो रौशनी ज़्यादा होगी,
यहां चराग़ अपने हिस्से का थोड़ा थोड़ा मकान लेगए

अनस आलम।

Monday, 6 May 2019

Ishq | ek samandar |

इश्क़ कर के औरों की फ़िक्र नहीं करते,
समंदर में उतर कर लहरों की फ़िक्र नहीं करते

ये सफर में बहुत मिलेंगे रास्ता रोकने वाले,
मंज़िल चाहिए तो गैरों की फ़िक्र नहीं करते

चाहत सरहद के पार है और हिचकिचाते भी हो,
उस हासिल करना है तो पहरों की फ़िक्र नहीं करते

जब तलक ज़िंदा हूं ये ज़मीन नहीं छोड़ पाऊंगा,
हम गांव के लोग शहरों की फ़िक्र नहीं करते

उसने नक़ाब हटाने को कहा पर हमने कह दिया,
हम किरदार की ख़ुशबू के आगे चेहरों की फ़िक्र नहीं करते

अनस आलम।

Din me rahoon to raushan shaam dhoondhta hoon.

दिन  में रहूं तो मैं रौशन शाम ढूंढता हूं,
मदहोशी  में तो बावर्चीखाने में भी जाम ढूंढता हूं


तनहा हूं, तार्रुफ कराओ मेरा ज़रा कुछ हसीनो से,
इस क़दर खाली हू के कुछ काम ढूंढ़ता हूं


तुमने ही आदत बिगाड़ी मेरी खिड़कियों से झांक,
में पागल अब हर दरख़्त पर आम ढूंढ़ता हूं


इस तरह से घेरा है मोहब्बत ने मुझे "आलम"
की हर किताब में ग़ालिब का नाम ढूंढ़ता हूं

अनस आलम..


Sunday, 5 May 2019

MAA KA DIL

उसका मेरी बंद आंखो को चूमना 

अपनी ज़ानों पर घंटों मेरा सर रख कर बालों में उंगलियां फेरना

मैं भले रूठ जाऊं पर उसका मुझे चाहते रहना 

ऐसी कुव्वत मां के दिल के सिवा किसी दिल को हासिल नहीं 

देखी ही नहीं आज तक ऐसी तड़प जो तेरी आंखो में थी मेरे घर छोड़ते वक्त थी

देखा ही नहीं आज तक ऐसा आंचल जिसकी खुशबू आज तलक बरक़रार है 

देखी ही नहीं ऐसी आह जो मुझे चोट लगने पर तेरे कलेजे से निकलती है 

कभी कभी लगता है तेरे किरदार को बायां करने का मर्तबा कोई शायर नहीं रखता 

कभी कभी लगता है एक ग़ज़ल में तुझे उतार पाना नामुमकिन सा है 

कभी कभी लगता है मेरे सारे एहसास जो तेरे लिए हैं वो एक नज़्म में समा नहीं पाएंगे 

पर फिर भी अपनी इस नाकाम कोशिश में ये कोशिश कर रहा हूं के तुझे बायां कर सकूं 

लजीज रोटियों के पीछे न जाने कितनी बार जले हाथ थे 

तुम्हे खिलाने के वास्ते न जाने उसकी कितनी बार भूखी रातें थी

तुम्हे पैदा करते वक्त ऐसा दर्द जो किसी मर्द के लिए सेहेन कर पाना नामुकिन है 

पर फिर भी तुम कहते हो पैदा तो सब करते हैं पालते सब हैं 

सच में ऐसी मोहब्बत की कुव्वत मां के दिल के सिवा किसी दिल को हासिल नहीं। 

अनस आलम 

Saturday, 4 May 2019

Maa | ek Azeem shakhsiyat |

जिस शाख़ का पत्ता हूं उसकी गोद में सो लूं आज,
मां सामने है जी चाहता है लिपट के रो लूं आज

ये जो इत्र बहुत नाज़ करते हैं अपनी खुशबू पर,
शर्मा जाएं, मां के आंसुओं से गर दामन भिगो लूं आज

ये दैर-ओ-हरम में रूह पाक करने को भटकता था,
मां के क़दमों में किए सजदों से पाक हो लूं आज

वो वक्त आजाए के मां फिर से दौड़े मेरे पीछे,
जी चाहता है फिर घी में उंगलियां डुबो लूं आज

अनस आलम

x

जलते चारागों का मुस्तकबिल नहीं होता

जलते चरागों का मुस्तकबिल नहीं होता,

क्यूंकि हवाओं का कोई दिल नहीं होता 


कौन अपना कौन पराया वो खुद बताएंगे, 

हर शख्स दुख सुख में शामिल नहीं होता 


हर बार घायल होगा मगर उस उठना होगा, 

कोई इश्क़ इतनी आसानी से कामिल नहीं होता 


कभी कभी सोचता हूं क्या ग़ज़ब हो जाता, 

गर तेरे रुखसारों पर ये तिल नहीं होता 


बूंदों में सदियों का सफर तय करता है,

कोई साहिल इतनी आसानी से साहिल नहीं होता 


अनस आलम 


Friday, 3 May 2019

नींद आंखो में है मगर ।

नींद आंखों में है मगर सोता नहीं हूं,
नाकाम रोज़ होता हूं पर रोता नहीं हूं

जिस तरह गवा बैठा हूं तुमको असलियत में,
ख्वाबों में आती हो तो तुम्हे खोता नहीं हूं

तेरे न होने पर भी तुझसे बातें करता हूं,
इतना तो खुद से भी मुखातिब होता नहीं हूं

मेरे चेहरे को खुद के मुताबिक चाहते हो,
ज़मीर मेरा ज़िंदा है कोई मुखौटा नहीं हूं

मेरे मुंह से जो निकलेगा हमेशा सच होगा,
तेरी नोमाईश का कोई रट्टू तोता नहीं हूं

अनस आलम

Use paane ka junoon

अब कहां उसे पाने जुनून सीने में रह गया,
जबसे मैकदों में बैठा पीने में रह गया

जबसे लग गया ज़माने की रफ्तार से कदम मिलाने, 
मैं हसना भूल गया सिर्फ जीने में रह गया

झूठ, मक्कारी की सीढ़ी से वो पहुंच गए आसमान तक
मेरी खुद्दारी का चोला भीगा पसीने में रह गया

सब ने दरिया में उतरकर अपनी प्यास बुझा ली
ये मैं ही था जो अपने सफीने में रह गया

अनस आलम

Yaad hai na....

याद है ना,
मेरे हाथों में वो गुलदस्ता,
तेरे घर तक जाने वाला रास्ता,
तेरा मुझसे अनजाने में वाबस्ता,
ये सब मुझसे पूछते हैं के कहां है तू, 

याद है ना,
तेरा घंटो तक मुझमें हो जाना मशगूल,
तेरे हाथ से मेरा हाथ छू जाना जिसे तू कहती थी भूल,   
किताबों में दबे वो गुलाब के,
ये यादें मुझसे पूछती हैं के कहां है तू,

याद है ना,
तेरा खिड़की से यूं झांकना, 
अपने हाथो से तेरी बदन कि सिलवटों को मेरा नापना,
मेरा पहली बार तुझे छूने पर तेरा वो कांपना,
ये ज़िन्दगी के कुछ पहलू हमेशा सवाल करते हैं कहां है तू,

याद है ना,
तेरी खुशबू दावा थी और मैं कोई बेचैन मर्ज़,
जैसे मैं नमाज़ी और तू कोई नमाज़े फ़र्ज़,
जैसे तेरी बाहें शराफत और मैं कोई बदनाम कर्ज़,
ऐसे ही कुछ किस्से पूछते हैं मुझसे के कहां है तू,

याद है ना,
उन हसीन रातों में मेरी बदन का तेरी बदन से वो पाक वास्ता,
मेरी उंगलियों का सफर, तेरी पेशानी से पांज़ेब तक का रास्ता,
उस कागज़ पर लिखी मोहब्बत के बंटवारे की दास्तां, 
अक्सर  ये खयाल मुझसे पूछते हैं के कहां है तू,
याद है ना।                                          

 ~अनस आलम